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ऑटिज्म से जुड़े मिथ्य

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डॉ अजय शर्मा
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महत्वपूर्ण जानकारी

  1. ऑटिझम को लेकर गलत जानकारी आम है, लेकिन सही जानकारी से माता-पिता और देखभाल करने वाले बेहतर मदद कर सकते हैं।
  2. जागरूकता से स्वीकार्यता बढ़ती है और एक समावेशी (inclusive) माहौल बनता है।
  3. हर बच्चा अलग होता है – उसकी अपनी ताकतें और ज़रूरतें होती हैं, इसलिए मदद भी उसके अनुसार होनी चाहिए।
  4. जल्दी पहचान और सही फैसलों से बच्चे के विकास में अच्छा असर पड़ सकता है।
  5. परिवारों को मदद और संसाधन मिल सकते हैं, जैसे ‘नई दिशा’ की मुफ्त हेल्पलाइन।

ऑटिझम क्या है?

ऑटिझम एक न्यूरोडेवलपमेंटल स्थिति (neurodevelopmental condition) है, जिसका मतलब है कि यह दिमाग के विकास को प्रभावित करती है। इससे व्यक्ति के बात करने, जानकारी समझने और आसपास की दुनिया से जुड़ने का तरीका थोड़ा अलग होता है। “स्पेक्ट्रम” शब्द बहुत ज़रूरी है – इसका मतलब है कि हर व्यक्ति में ऑटिझम के लक्षण, ताकतें और ज़रूरतें अलग-अलग हो सकती हैं।

यह सोचने, महसूस करने और होने का बस एक अलग तरीका है।
कुछ बच्चों को आवाज़, रोशनी, कपड़ों की बनावट या भीड़ से ज्यादा परेशानी हो सकती है।
कुछ बच्चों को एक जैसी दिनचर्या पसंद होती है, बोलकर बात समझने या करने में समय लग सकता है, या वे इशारों, तस्वीरों या टेक्नोलॉजी की मदद से बात कर सकते हैं।

बच्चों में ऑटिझम के लक्षण

  • बच्चा आँखों में आँखें डालकर बात नहीं कर पाता
  • बोलने में देरी हो सकती है
  • दूसरों से दोस्ती करने या निभाने में मुश्किल हो सकती है
  • बार-बार एक जैसी हरकतें या आदतें दोहरा सकता है

याद रखें:
अगर कोई बच्चा अपने उम्र के बच्चों जैसा नहीं बोल रहा या जवाब नहीं दे रहा, तो इसका मतलब ये नहीं कि वह कुछ समझ नहीं रहा या महसूस नहीं कर रहा। कई बच्चे बिना बोले अपनी बात अलग तरीकों से बताते हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए दूसरी तरह की मदद या टूल्स की ज़रूरत होती है।

जल्दी समझना और सही मदद देना क्यों ज़रूरी है

अगर बच्चों में ऑटिझम के लक्षण जल्दी पहचान लिए जाएँ, तो माता-पिता और देखभाल करने वाले सही मदद पा सकते हैं। लेकिन यह भी समझना ज़रूरी है कि सीखने और बढ़ने के लिए कोई “एक ही सही समय” नहीं होता – हर बच्चा अपने समय पर सीखता है, और किसी भी उम्र में बदलाव मुमकिन होता है।

बच्चे को ज़बरदस्ती “दूसरों जैसा” बनाने की कोशिश करने के बजाय, हमें ऐसा माहौल बनाना चाहिए जो उनके स्वभाव को समझे, उन्हें शांत और सुरक्षित महसूस कराए, और ज़रूरी तनाव को कम करे।

ऑटिझम से जुड़ी गलत धारणाएँ (Myths) और सच (Facts)

1. मिथक: ऑटिझम गलत परवरिश की वजह से होता है
सच: यह सच नहीं है। ऑटिज़्म का कारण परवरिश नहीं है। शोध बताता है कि यह दिमाग के विकास में अंतर की वजह से होता है, खासकर जब बच्चा छोटा होता है। यह एक न्यूरोडेवलपमेंटल स्थिति है, न कि पालन-पोषण की गलती।

2. मिथक: ऑटिझम वाले बच्चे बुद्धिमान नहीं होते क्योंकि उन्हें बात करने में परेशानी होती है
सच: बातचीत में परेशानी का मतलब यह नहीं कि बच्चा समझदार नहीं है। ऑटिझम वाले बच्चों का सोचने और समझने का तरीका अलग हो सकता है। बुद्धिमानी कई रूपों में दिखती है, और आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले टेस्ट हर बच्चे की पूरी क्षमता नहीं दिखा पाते।

3. मिथक: ऑटिझम वाले बच्चों को अकेले रहना पसंद है और वे दोस्त नहीं बनाना चाहते
सच: ऐसा नहीं है। वे दोस्ती और जुड़ाव को अलग तरीके से दिखा सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे दूसरों से जुड़ना नहीं चाहते। बहुत से ऑटिस्टिक बच्चों को दोस्ती की गहरी चाह होती है, भले ही वे इसे थोड़े अलग अंदाज़ में दिखाएं।

यह प्रस्तुति (presentation) आपको ऐसे और भी मिथकों के बारे में जानने और सच समझने में मदद करेगी।

ऑटिझम से जुड़ी गलतफहमियाँ (Misconceptions)

भले ही अब जागरूकता बढ़ रही है, फिर भी ऑटिझम को लेकर कई पुरानी और गलत धारणाएँ अब भी लोगों की सोच को प्रभावित करती हैं। ये गलतफहमियाँ आमतौर पर जान-बूझकर नहीं होतीं – ये अक्सर सही जानकारी और अनुभवों की कमी की वजह से होती हैं।

यहाँ कुछ कारण दिए गए हैं कि ये गलतफहमियाँ क्यों बनी हुई हैं:

1. सीमित या एक जैसे मीडिया में दिखाया जाना

ज्यादातर फिल्में, टीवी शोज़ या न्यूज़ में ऑटिज़्म को एक ही तरह से दिखाया जाता है। लेकिन असल ज़िंदगी फिल्मों जैसी नहीं होती।
ऑटिझम स्पेक्ट्रम में तरह-तरह के बच्चे आते हैं – कोई कलाकार होता है, कोई सोचने में गहरा, कोई शांत होता है, कोई बातूनी, कोई बार-बार एक ही हरकत करता है, किसी को एक जैसी दिनचर्या पसंद होती है, और किसी को उससे परेशानी भी होती है – ये सब अलग-अलग तरह से आम और समझने लायक हैं।

2. पुरानी मेडिकल भाषा और समझ

बहुत सालों तक प्रोफेशनल्स ऑटिझम को “कमज़ोरी” के नजरिए से देखते थे – कि इसमें क्या ग़लत है। अब यह सोच बदल रही है, लेकिन कुछ पुराने शब्द जैसे “हाई-फंक्शनिंग” और “लो-फंक्शनिंग” अभी भी इस्तेमाल होते हैं।
ये शब्द किसी बच्चे की असली ज़रूरतों को ठीक से नहीं बताते।

सही तरीका है: बच्चे की ताकत को देखकर यह पूछना – “इस बच्चे को अच्छी तरह बढ़ने और खुश रहने के लिए किस तरह की मदद चाहिए?”, न कि “यह बच्चा सामान्य से कितना अलग है?”

3. ऑटिझम वाले लोगों की बात न सुनना

अक्सर माता-पिता और प्रोफेशनल्स ऑटिज़्म के बारे में पढ़ते हैं, पर खुद ऑटिझम वाले लोगों की बात नहीं सुनते।
जब हम उनकी कहानियाँ और अनुभव सुनते हैं, तो हमारी जानकारी ज्यादा सच्ची, भावनात्मक और समझदारी वाली बनती है।

हर बार जब हम किसी झूठ या भ्रम को चुनौती देते हैं, हम समझदारी के लिए जगह बनाते हैं।
हर बार जब हम किसी के असली अनुभव को सुनते हैं, तो हम बेहतर तरीके से मदद करने लायक बनते हैं।

इसलिए यह प्रस्तुति (presentation) इन आम गलतफहमियों को दूर करने और सही, साफ़ जानकारी देने के लिए बनाई गई है। ज्यादा जानकारी और समझ से माता-पिता और देखभाल करने वाले अपने बच्चे की अलग-अलग ज़रूरतों और खूबियों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और उनका समर्थन कर सकते हैं।

ऑटिझम से जुड़ी बहुत सी धारणाएँ गलत जानकारी से बनती हैं। यह रिसोर्स सच और झूठ में फर्क करना सिखाता है और उन सवालों के जवाब देता है जो बच्चों के डायग्नोसिस के बाद अक्सर मन में आते हैं।

जानकर, समझकर – हम अपने बच्चे के लिए एक सहायक, सकारात्मक और अपनापन भरा माहौल बना सकते हैं।

माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए

जब किसी बच्चे को ऑटिझम का डायग्नोसिस मिलता है, तो माता-पिता के मन में कई तरह की भावनाएँ आ सकती हैं – राहत, उलझन, दुख या ग़म। ये सभी भावनाएँ बिल्कुल सामान्य और सही हैं।

सबसे ज़रूरी बात यह है कि अब यह सोचने की बजाय कि “मेरे बच्चे में क्या ग़लत है?”, हम यह सोचें कि “मैं अपने बच्चे की कैसे मदद कर सकता/सकती हूँ?”

शुरुआत करें – सीखने से,  अपने बच्चे को ध्यान से सुनने से और उस दबाव को छोड़ने से कि आपका बच्चा समाज के तय किए गए “परफेक्ट” मापदंडों पर खरा उतरे।

इस गाइड में हमने उन आम सवालों पर बात की है जो अक्सर ऐसे माता-पिता के मन में आते हैं जिनके बच्चे को हाल ही में ऑटिझम का पता चला है। ऑटिज़्म के बारे में सही जानकारी लेने से आप अपने बच्चे की ज़रूरतों को बेहतर समझ सकेंगे और उसके लिए बेहतर सहयोग कर पाएंगे।

आभार: स्लाइड 19 से 25 में जानकारी देने के लिए हम जय वकील फाउंडेशन का धन्यवाद करते हैं।

अगर आपके मन में ऑटिझम, डाउन सिंड्रोम, ADHD या अन्य विकास संबंधी अंतर को लेकर कोई सवाल है, तो नई दिशा (Nayi Disha) की टीम आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार है। हमारी मुफ्त हेल्पलाइन नंबर है: 844-844-8996 (कॉल या व्हाट्सऐप पर संपर्क करें) हमारे काउंसलर्स कई भाषाएँ बोलते हैं – जैसे हिंदी, अंग्रेज़ी, मलयालम, गुजराती, मराठी, तेलुगु और बंगाली।

DISCLAIMER: यह गाइड केवल जानकारी देने के लिए है। किसी भी व्यक्तिगत सहायता के लिए कृपया किसी योग्य प्रोफेशनल से संपर्क करें।

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